Thursday, May 20, 2021

Essay on swami vivekananda in hindi

Essay on swami vivekananda in hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध – Swami Vivekananda Essay in Hindi



आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन का उद्भव व धर्म सुधार आन्दोलन से जुड़ा हुआ है जिसकी शुरुआत स्वामी विवेकानंद ने की थी, essay on swami vivekananda in hindi. विदेशी शासन व पश्चिमी चिंतन धाराओं ने भारतीय चिंतन व संस्कृति की उपादेयता के सम्बन्ध में जो चुनौती प्रस्तुत की गई उसकी एक प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई. प्राचीन काल से भारत में धर्म को मानवतावादी सार्वभौमिक रूप प्रकट किया गया. भारतीय राष्ट्रवादियों पर वेदांत हिन्दू धर्म का स्पष्ट प्रभाव पड़ा.


Swami Vivekananda ने अपने चिंतन में कई पूर्वकालीन अवधारणाओ को समकालीन सन्दर्भ में परिभाषित किया और एक नई सामाजिक राजनीतिक समझ को जन्म दिया. मूलतः धर्म से जुड़े विचारक होने के कारण स्वामी विवेकानंद के राजनीतिक चिंतन की हमेशा से प्रष्टभूमि धर्म ही रहा. इसी आधार पर स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र की स्वतंत्रता एवं आत्मसम्मान को को सबसे अधिक मूल्यवान मानते हुए धार्मिक पहलू को स्थापित किया जो उन्हें पश्चिमी राष्ट्रवादी चिंतन से अलग कर देता हैं.


क्योकि पश्चिम में राष्ट्रवाद का विकास, महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तत्व धर्म से होकर हुआ हैं. स्वामी विवेकानंद से पूर्व विभिन्न कालों में धर्म के स्वरूप व व्यवस्था में रूढ़िया गई थी. जिन्होंने न केवल व्यक्ति मात्र की स्थिति बदत्तर हुई वरन समाज व राष्ट्र भी लम्बे समय तक अज्ञान रुपी अन्धकार में रहे. ऐसी स्थिति में विवेकानंद essay on swami vivekananda in hindi धर्म के व्यवहारिक रूप को पहचानने पर बल दिया. धर्म में व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों पहलुओं को महत्व दिया.


वेदांत के आधार पर स्वामी विवेकानंद ने समानता, कर्तव्य, अधिकार एवं न्याय इत्यादि राजनीतिक अवधारणाओ की व्याख्या की. स्वामी विवेकानंद ने धर्म के माध्यम से पुनः राष्ट्र को जागृत करने का प्रयास किया. अपने इस कार्य में विवेकानंद ने धर्म में निर्भीक, संगठित एवं स्वावलंबी मूल्यों को स्थापित करने का प्रयत्न किया.


इन्होने धर्म को व्यक्तिगत विकास का आधार न मानते हुए इसे सामाजिक ढांचा प्रदान किया. धर्म में व्याप्त सामाजिक विषमता, रूढ़िवादिता, संकीर्ण कट्टरता, असहिष्णुता, साम्प्रदायिकता, essay on swami vivekananda in hindi, जातीयता तथा निर्बलता को खत्म कर एक आदर्श सनातन का स्वरूप बनाया. स्वामी विवेकानंद की कहानी जीवनी essay on swami vivekananda in hindi swami vivekananda biography Story History in hindi. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को कलकत्ता के एक कुलीन परिवार essay on swami vivekananda in hindi हुआ था.


उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. विवेकानंद नाम उन्होंने सन्यास ग्रहण करने के बाद शिकागो के धर्म संसद में भाग लेने हेतु मुंबई जाते समय ग्रहण किया था. उनका व्यक्तित्व प्रभावोंत्पादक, essay on swami vivekananda in hindi तेजोमय था.


उनकी बुद्धि प्रखर थी और स्मृति विलक्षण. उनके सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि उन्हें एनसाईंक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के ग्यारह खंड कंठस्थ थे. स्वामी विवेकानंद अपने महाविद्यालयी जीवन में एक अच्छे वक्ता के रूप में जाने जाते थे. उनके पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे. उनकी माता हिन्दू धर्म की महत्ता में विश्वास करने वाली विदुषी महिला था. माता के सद्गुणों का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा, essay on swami vivekananda in hindi. उन्होंने जे एस मिल, हीगल, डेविड हयूम, कांट व फक्ते, सिप्नोजो, शोपेन होवर आदि पश्चिमी दार्शनिक की रचनाओं का विशद् व गहन अध्ययन किया.


स्वामी विवेकानंद ब्रह्म समाज के विचारों से प्रभावित थे. लेकिन वैचारिक अंतर्द्वंद के चलते वे नास्तिकतावाद व सशंयवाद की ओर भी प्रवृत हुए.


अपने मित्र ब्रजेन्द्रनाथ सील की प्रेरणा से उन्होंने शेले व वुड्सवर्थ को पढ़ा और साथ में परम ब्रह्मा के तत्व ज्ञान की ओर प्रवृत हुए. स्वामी विवेकानंद के विचारों में बुद्धिवाद, वेदांत के अद्वैतवाद, हीगल के द्वन्द्वात्मक परमतत्व तथा फ़्रांस राज्य की क्रांति के essay on swami vivekananda in hindi वाक्य स्वतंत्रता, समानता, भ्रातत्व का स्वरूप दिखाई देता हैं.


उन्होंने व्यक्तिवाद के स्थान पर सार्वभौमिक विवेक को श्रेष्ठ माना. वे सत्यज्ञान की खोज में नवम्बर में रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आए.


उन्होंने गृहस्थाश्रम का त्याग कर दिया और हिमालय के जंगलों में साधना करने लगे. परिव्राजक के रूप में इन्होने भारत में भ्रमण किया. जिससे उन्हें साधारण जनता के भयंकर कष्टों और उनकी तकलीफों का पता चला. स्वामी जी ने में विश्व धर्म संसद के शिकागो सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय लिया.


खेतड़ी के तत्कालीन ठाकुर साहब ने शिकागो सम्मेलन में सम्मिलित होने का व्यय वहन किया. वह सम्मेलन स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक स्वर्णिम essay on swami vivekananda in hindi बन गया. भारतीय वेदांत की आधुनिक अर्थों में व्याख्या कर स्वामी विवेकानंद ने दिव्य संदेश दिया.


उनका भाषण भारत की सार्वदेशिकता और विशाल ह्रद्यता से ओतप्रेत था. वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पश्चिम की essay on swami vivekananda in hindi जनता के सम्मुख भारत के आध्यात्मवाद का महान आदर्श उपस्थित कर देश के वास्तविक स्वरूप का चित्र पश्चिम के सामने रखकर उन्हें चकित कर दिया. और अंधविश्वासों व कुप्रथाओं को दूर करने के लिए कार्य किया.


एक वर्ष पश्चात इन्होने सान फ्रांसिस्को, पेरिस व मिस्र की यात्राएं की. संस्कृत व वेदांत के अध्ययन के लिए उन्होंने बनारस में एक पाठशाला की स्थापना की.


अत्यधिक कार्यभार के कारण स्वामी विवेकानंद का स्वास्थ्य निरंतर गिरने लगा, लेकिन इसकी परवाह किये बिना वे अपने कार्य में लगे रहे. अन्तः 39 वर्ष की अल्पायु में 4 जुलाई को उनका देहावसान हो गया, essay on swami vivekananda in hindi. भारतीय चिंतन में कर्मयोग में उनका संदेश आज भी प्रेरक शक्ति हैं. धर्म एक शाश्वत अवधारणा के रूप में मानव इतिहास में अवस्थित रहा हैं. यह केवल दर्शन अथवा ईश्वरीय साधना का विषय मात्र नहीं है. वर्ण जीवन के समस्त पहलुओं से सम्बन्धित हैं. भारत में धर्म एक विशिष्ठ उपासना पद्धति तक ही सीमित नहीं रहा हैं.


वरन उपासना पद्धति उसका एक अंग मात्र हैं. धर्म शब्द की उत्पत्ति धृ धातु से हुई हैं जिसका अर्थ है धारयति इति धर्मः अर्थात धारण किया जाए, जिसे आचरण में धारण कर सके. धर्म के रूप में विधान नैतिक, essay on swami vivekananda in hindi, सदाचार, सत्कर्म, कर्तव्य, न्याय, पवित्रता, नीति आदि को परिभाषित किया गया हैं. स्वामी विवेकानंद के धार्मिक विचारों के निर्माण का प्रमुख केंद्र वेद व वेदांत दर्शन रामकृष्ण परमहंस का प्रभाव व स्वयं के निजी अनुभव था. उन्होंने दर्शन को व्यवहारिक रूप देने का प्रयास किया.


उनका मानना था कि वेदांत उस ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो मृत्यु के पश्चात तो स्वर्ग के समस्त सुख दे सके, किन्तु जीवित व्यक्ति के लिए रोटी उपलब्ध essay on swami vivekananda in hindi करवा सके. उनका मानना था कि मानव की वास्तविक प्रकृति ईश्वरीय है और वेदान्त संसार त्यागने के स्थान पर समस्त विश्व को ब्रह्मामय बनाने का पाठ सिखाते हैं. उन्होंने अपने समय के अन्य विचारकों से अलग ईश्वर के निर्गुण और सगुण दोनों रूपों को स्वीकार किया हैं. ईशावस्यतिदम सर्वम की धारणा से उनके विचारों में अद्वैत एवं विशिष्ठद्वैत दोनों का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता हैं.


स्वामी विवेकानंद ने कहा कि वेदों ने शुद्ध प्रेम की शिक्षा दी हैं. इसी आधार पर शिकागो धर्म संसद में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा — हे अमृत के पुत्रगण तुम्हे पापी कहना अस्विकारता हैं. तुम तो ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के हो, पवित्र और पूर्ण आत्मा हो. तुम इस भूमि के देवता हो, तुम भला पापी कैसे हो सकते हो. मनुष्य को पापी कहना ही पाप है. वह मानव स्वभाव पर घोर लांछन हैं. प्राचीन काल में हिन्दू शब्द का प्रयोग किसी धर्म के रूप में नहीं, विशेष लोगों के सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ हैं.


एक विशेष धर्म के रूप में हिन्दू शब्द का प्रयोग बहुत बाद में आरम्भ हुआ. हिन्दू धर्म में मौजूद विभिन्न मत मतांतर इसे दुरूह पंथों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों परम्परागत मतों व आदिम कर्मकांडों का पुंज मानते थे. इसलिए यूरोपीय इनकी आलोचना करते थे.


स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की व्याख्या किसी संकुचित अर्थ, उपासना पद्धति या विशेष कर्मकाण्ड के आधार पर नहीं की. उनका कहना था हम लोग हिन्दू है. मैं हिन्दू शब्द का प्रयोग किसी बुरे अर्थ में नही कर रहा और मैं उन लोगों से कदापि सहमत नहीं, जो उससे कोई बुरा अर्थ समझते हैं. प्राचीन काल में इस शब्द का अर्थ था सिन्धु नदी के दूसरी ओर बसने वाले.


स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म को महत्व दिया. उन्होंने धर्म व हिन्दू इन दोनों शब्दों को समानार्थ माना, उनका मानना था कि यदि कोई हिन्दू धार्मिक नहीं है तो वह उसे हिन्दू नहीं मानते हैं.


उनका कहना था कि प्रत्येक धर्म में ईश्वर को माना जाता है, लेकिन धर्म से जुड़ा व्यक्ति स्वयं के धर्म को ही श्रेष्ठ समझता हैं. ठीक वैसे ही जैसे एक कुँए का मेढ़क अपने कुँए को ही सम्पूर्ण संसार मानता हैं. जबकि हिन्दू धर्म में माना जाता है कि विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार विभिन्न टेड़े मेडे अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अंत में ईश्वर में ही आकर मिल जाते हैं. स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त दर्शन को इस तरह विकसित किया जिससे समस्त संघर्षों को दूर किया जा सके, essay on swami vivekananda in hindi.


और इससे मानव जाति का बहुमुखी विकास हो सके. उन्होंने भारत की विशिष्ठता को धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया. धर्म की विशद व्याख्या में मानवतावादी, सार्वभौमिक स्वरूप, वैज्ञानिकता और आचरण के नियमों को प्रस्तुत किया. उन्होंने विश्व के सम्मुख भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की श्रेष्ठता को प्रतिपादित किया. उनके मन में मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम था. उन्होंने पश्चिम के विपरीत राष्ट्रवाद का आधार धर्म को बनाते हुए आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की अवधारणा विकसित की. राष्ट्रवाद के उन्नयन में अभयम आत्मबल और आत्मविश्वास को अत्यधिक महत्व दिया.


उन्होंने अस्प्रश्यता, शोषण, स्त्रियों की गिरती दशा, शिक्षा के अभाव आदि को सामाजिक विषमता व गिरती स्थिति के लिए उत्तरदायी माना तथा अवसरों की समानता को सिद्धांत स्वीकार किया. स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को कर्मयोग की महत्ता समझाई. दरिद्रनारायण की सेवा को राष्ट्रवाद से जोड़ने का उनका विचार गाँधी चिंतन में स्पष्ट दिखाई देता हैं. उन्होंने संकीर्ण राष्ट्रवाद से दूर रहकर राष्ट्रीय एकीकरण पर बल दिया. वे भारत के एक ऐसे राष्ट्रवादी हैं. जो धर्म के माध्यम से भारत में राष्ट्रवाद को पुनर्जाग्रत करना चाहते थे.


स्वामी विवेकानंद परम्परागत अर्थों में दार्शनिक या समाज सुधारक नहीं थे. वास्तव में वे धार्मिक व्यक्ति थे. जिन्होंने धर्म की व्याख्या इस तरह से की, कि आपसी संघर्ष, साम्प्रदायिकता, सामाजिक दुरावस्था व राष्ट्रीय परतन्त्रता का समाधान स्वतः ही हो जाए.




10 lines on Swami Vivekanand in Hindi - स्वामी विवेकानंद पर निबंध

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